एकीकृत कृषि, डेयरी, ऊर्जा व भूमि विकास कार्यक्रम (INFADEL)

एकीकृत कृषि, डेयरी, ऊर्जा व भूमि विकास कार्यक्रम (INFADEL) :- निम्न परियोजना भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड की एक प्रमुख योजना है। इस परियोजना में उपयोगी और विकास कार्यक्रमों की एक श्रृंखला शामिल है जो पशुपालकों, किसानों एवं राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सहायक होगी। परियोजना में निम्न कार्यक्रम शामिल हैं :

• प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हुए एकीकृत खेती
• डेयरी (दूध अवशीतन, पाश्चराइजेशन और पैकेजिंग) संयंत्र की स्थापना
• प्राकृतिक सौर ऊर्जा का उत्पादन
• जैविक खेती (प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके कई वस्तुओं का उत्पादन)
• बंजर भूमि का विकास
• ग्रामीण क्षेत्रों में गोदामों और कोल्ड स्टोरेज श्रृंखला की स्थापना

• पोल्ट्री फार्मिंग, बकरी फार्मिंग और डेयरी फार्मिंग का विकास
• ऑर्गेनिक फ्लोर मिल प्लांट की स्थापना
• जैविक सरसों मिल संयंत्र की स्थापना
• ग्रामीण क्षेत्रों में "पशुपालक उन्नति केंद्र" की स्थापना

पशुपालन,कृषि का एक अभिन्न अंग है और लोगों की पोषण आपूर्ति में योगदान देता है। यह आय को भी बढ़ाता है और कई अन्य लोगों को रोजगार प्रदान करता है। इस प्रकार, यह ग्रामीणअर्थव्यवस्था के विकास को संतुलित करता है। भारत के पशुपालन वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और आंध्रप्रदेश शामिल हैं।

एकीकृत खेती (मिश्रित खेती के रूप में भी जाना जाता है) एक कृषि प्रणाली है एकीकृत खेती का मुख्य उद्देश्य है कि खेती के घटक एक दूसरे का समर्थन करते हैं |

जिस भूमि का उपयोग या तो बंजर होने के कारण या क्षेत्र में जल भराव की समस्या के कारण नहीं किया जाता है वह भूमि कृषि उद्देश्यों के लिए अनुपयुक्त हो जाती है। देश की कुल भूमि का 1/3 भाग ऐसी अनुत्पादक भूमि से बना है। इस कार्यक्रम में बंजर भूमि विकास के लिए प्राथमिक रूप से कार्य किये जा रहे हैं।

भारत 1998 के बाद से दुनिया के दुग्ध उत्पादक देशों में पहले स्थान पर है और दुनिया में सबसे बड़ी गोजातीय आबादी है। 1950-51 से 2017-18 की अवधि के दौरान भारत में दुग्ध उत्पादन 17 मिलियन टन से बढ़कर 176.4 मिलियन टन हो गया है, जबकि 2016-17 के दौरान 165.4 मिलियन टन की तुलना में 6.65% की वृद्धि दर्ज की गई थी। देश में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता जो 1950-51 के दौरान प्रति दिन 130 ग्राम थी, 2017 में बढ़कर 374 ग्राम प्रतिदिन हो गई है। यह हमारी बढ़ती आबादी के लिए दूध और दुग्ध उत्पादों की उपलब्धता में निरंतर वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है।

लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए डेयरी आय का एक महत्वपूर्ण माध्यमिक स्रोत बन गया है और विशेष रूप से सीमांत और महिला किसानों को रोजगार और आय पैदा करने के अवसर प्रदान करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अधिकांश दूध का उत्पादन छोटे, सीमांत किसानों और भूमिहीन मजदूरों द्वारा पाले गए जानवरों द्वारा किया जाता है।भारत में कुल दुग्ध उत्पादन में से लगभग 48 प्रतिशत दूध की खपत या तो उत्पादक स्तर पर की जाती है या ग्रामीण क्षेत्र में गैर-उत्पादकों को बेचा जाता है। शेष 52% दूध शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ताओं को बिक्री के लिए उपलब्ध अतिरिक्त बिक्री योग्य है। विपणन योग्य अधिशेष में से यह अनुमान लगाया गया है कि बेचे गए दूध का लगभग 40% असंगठित क्षेत्र (अर्थात सहकारी और निजी डेयरियों द्वारा 20% प्रत्येक) द्वारा नियंत्रित किया जाता है और शेष 60% असंगठित क्षेत्र द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

पुराने समय से ग्रामीण इलाकों में मुर्गियों को पाला जाता रहा है लेकिन आज के समय मे मुर्गी पालन एक बड़े व्यवसाय के रुप में उभर रहा हैं। मुर्गी पालन क्षेत्र लगभग 30 लाख लोग को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध कराने के अतिरिक्त बहुत से भूमिहीन तथा सीमांत किसानों के लिए सहयोगी आमदनी पैदा करने के साथ साथ ग्रामीण गरीबों को
पोषण तथा सुरक्षा प्रदान करने का एक शक्तिशाली साधन हैं.मुर्गी पालन के उत्पाद प्राणी प्रोटीन के प्रमुख स्रोत हैं. इसके अलावा इनसे हमारे शरीर में वसा, विटामिन्स एवं खनिज पदार्थों की भी पूर्ति होती हैं. मुर्गी पालन से पक्षियों की बीट भी प्राप्त होती है, इसका उपयोग कृषि एवं बागवानी में खाद के रूप में किया जाता हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी हमेशा से ही आजीविका के सुरक्षित स्रोत के रूप में पहचानी जाती रही है. बकरी छोटा जानवर होने के कारण इसके रख-रखाव में लागत भी कम होता है. सूखा पड़ने के दौरान भी इसके खाने का इंतज़ाम सरलता से हो सकता है. इसकी देखभाल का कार्य भी महिलाएं एवं बच्चे आसानी से कर सकते हैं और साथ ही जरुरत पड़ने पर इसे आसानी से बेचकर अपनी जरूरत भी पूरी की जा सकती है. अधिकतर लघु एवं सीमांत किसान आय कम होने के कारण सपरिवार एक या दो जानवर अवश्य पालते हैं, ताकि उनके लिए दूध की व्यवस्था होती रहे. इनमें गाय, भैंस और बकरी आदि शामिल होती हैं. बीते कुछ सालों से पड़ रहे सूखे की वजह से बड़े जानवरों के लिए चारा आदि की समुचित व्यवस्था आदि करना एक मुश्किल कार्य होने के वजह से लोग अब बकरी पालन को प्राथमिकता दे रहे है.